यह जो स्वतंत्रता दिवस है - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा

यह जो स्वतंत्रता दिवस है।
कितने जीवन भूनने पर,
और कितने घर फूँकने पर,
दृशित यह वरदान हुआ।
सुभाष की आशा का,
बिस्मिल की भाषा का।
गुंजित सुगान हुआ।
 
टुकड़ों के,
ज़ख़्मों से थी,
आहत माँ भारती।
भरे मन से,
जन ने,
की थी आरती।
भारत की अक्षुण्णता का,
विघटन की पीड़ा का,
भान रहे।
सदा भारत की शान रहे।

हेमन्त कुमार शर्मा - कोना, नानकपुर (हरियाणा)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos