राखी गौर - नर्मदापुरम (मध्य प्रदेश)
रक्षाबंधन का तोहफ़ा - कहानी - राखी गौर
मंगलवार, अगस्त 29, 2023
"अरे, अमित! रक्षाबंधन आ रहा है, दीदी से बात की क्या? कब तक आ रही है?"
"ठीक है मॉं! मैं करता हूँ दीदी से बात।"
"अरे पवन! जाओ मेरा फ़ोन लेकर आओ, ज़रा दीदी को फ़ोन लगाना है।"
"ठीक है भैया!"
"मॉं! दीदी से बात हो गई है, आज शाम तक दीदी आ जाएँगी।"
मॉं – "चलो! अच्छी बात है।"
अमित – "मॉं अब तो मेरी जॉब भी लग गई है, इस रक्षाबंधन तो मैं दीदी को तोहफ़ा दूँगा, मेरी तरफ़ से एक अच्छी सी मँहगी साड़ी लाकर दूँगा कि वो देखते ही ख़ुश हो जाएँगी।"
पवन – "मैं भी दीदी को तोहफ़ा दूँगा।"
अमित – "अरे रहने दे पवन! तू कहाँ से देगा? अभी तू छोटा है, अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, फिर जॉब पर लगना उसके बाद तोहफ़ा देना।"
पवन – "हॉं हॉं भैया! पता है मुझे।"
मॉं – "अरे ठीक है अब झगड़ा बंद करो दीदी के आने की तैयारी भी करनी है।"
(शाम के समय)
"अरे शोभा! आ गई तुम और मेरे प्यारे बच्चे सिया, शिवम कैसे हो बेटा?"
"नानी! हम ठीक है, आप कैसी हो?"
"मैं ठीक हूँ बेटा!"
(कुछ समय बाद)
मॉं – "अरे शोभा! ये तुम क्या अपनी डायरी में हमेशा कुछ न कुछ लिखती रहती हो। कुछ नहीं मॉं बस ऐसे ही मुझे लिखना अच्छा लगता है।"
मॉं – "अच्छा ठीक है चलो हमें बाज़ार भी चलना है, कुछ सामान खरीदना है।"
शोभा - "ठीक है मॉं!"
मॉं – "पहले तुम अपनी डायरी यही पर रखो, फिर चलो।"
शोभा – "ठीक है मॉं! चलिए।"
इनके बाज़ार जाने के पश्चात सोफ़े पर रखी डायरी पर पवन की नज़र पड़ती है और वह उसे पढ़ने लगता है।
पवन – "अरे ये तो दीदी की डायरी है, हमेशा इसमें कुछ न कुछ लिखती रहती है दीदी।"
ऐसा कहते हुए वह डायरी अपने पास रख लेता है।
(रक्षाबंधन वाला दिन)
शोभा – "मॉं आपने मेरी डायरी देखी क्या मिल ही नहीं रही है, दो दिनों से, पता नहीं कहॉं रख दी मैंने आपने देखी क्या?"
मॉं – "अरे शोभा! आज तो रक्षाबंधन है आज तो तुम्हारी डायरी का पीछा छोड़ो।"
"अरे मॉं! मुझे कुछ लिखना था"
मॉं – "चलो अपने दोनों भाईयों को राखी बाँधों और अपना तोहफ़ा ले लो, बड़े स्नेह से लाए है तुम्हारे लिए।"
शोभा मायूस सी बैठी थी।
अमित – "देखना दीदी की मायूसी को मैं कैसे गायब करता हूँ, दीदी मुझे राखी बॉंधेगी और उन्हें मैं ये मँहगी सी साड़ी दूँगा और वो ख़ुशी से झूम उठेगी"
ऐसा अमित ने पवन को चिढ़ाते हुए कहा।
शोभा ने अमित को राखी बॉंधी। अमित ने अपना तोहफ़ा दिया फिर भी शोभा के चेहरे पर मायूसी थी।
इसके बाद शोभा ने पवन को राखी बॉंधी। पवन ने शोभा को न्यूज़ पेपर देकर कुछ विशेष पढ़ने को कहा।
तभी अमित बोला- "अरे पवन! पागल हो गया है क्या तोहफ़े में न्यूज पेपर पढ़ने को कह रहा है, दीदी वैसे ही उदास है, उनकी डायरी न मिलने पर और तू और मायूस कर रहा है।
पवन – "अरे दीदी! प्लीज़ पढ़िए तो मेरे लिए"
शोभा – "ठीक है लाओ दिखाओ"
जैसे ही शोभा ने पेपर पढ़ा तो वह ख़ुशी से झूम गई, सब दंग रह गए ऐसा क्या लिखा है इस पेपर में जो ये इतनी ख़ुश हो गई।
तब शोभा ने बातया कि वो जो डायरी में लेखन करती है, वही लेखन इस पेपर में प्रकाशित हुई है, वह भी मेरे नाम सहित।
शोभा – "पर मेरा लेखन प्रकाशित हुआ कैसे?"
पवन – "दीदी! जब आप मॉं के साथ बाज़ार गए थे तो आप अपनी डायरी सोफ़े पर ही छोड़ गए थे, तब मैंने उस डायरी को खोलकर देखा तो उसमें आपके लेखन थे। जो बहुत ही अच्छे थे तो मैंने सोचा इतने अच्छे लेखन को तो प्रकाशित होना ही चाहिए तो मैंने प्रकाशन के लिए मेरे दोस्त के पिताजी को दिए और उन्हें भी ये लेखन पसंद आए। उन्होंने ये लेखन संपादक मंडल को भेज दिए और देखिए आज रक्षाबंधन के दिन ही आपके लेखन प्रकाशित हो गए।"
यह सुनकर शोभा की ऑंखे भर आई, अपने छोटे भाई पवन के गले लगकर कहॉं – "यह मेरे लिए दुनिया का सबसे प्यारा और महँगा रक्षाबंधन का तोहफ़ा है।"
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