मित्र - कविता - राजेश 'राज'

तुम्हारा जब दिल करे
फ़ोन या मैसेज के बिना 
किसी भी समय
मुझसे मिलने चले आना,
कोई भी औपचारिकता
पूरी करने का ख़्याल
मन में भूलकर भी मत लाना
बस यूँ ही,
मेरा ख़्याल आते ही
एक प्यारी मुस्कान लेकर
हमारे पास आ जाना।

और हाँ,
दरवाज़ा नॉक मत करना
मेरा नाम लेना
जिससे मैं तुम्हारी आवाज़ सुन
जैसा भी हूँ दौड़ता हुआ आऊँ,
गले लिपट कर बोलूँ
चल अन्दर चल
कहाँ था इतने दिनों तक?
और तुम मुस्कुरा भर देना।

जाने की जल्दी मत करना
थोड़ा वक़्त लेकर आना
मैं भी अपना वक़्त
तुम्हारे वक़्त में मिला दूँगा
फिर अतीत की कहानियाँ
आज की कुछ तस्वीरें 
कल की कुछ उम्मीदें
लेकर कहीं अलमस्त से
तोते की तरह बतियाएँगे 
कबूतर की तरह गुटरगूँ करेंगे 
गौरैया की तरह फुदकेंगे 
गिलहरियों जैसे भागेंगे 
या एक दूजे को कुछ खिलाएँगे 
या मित्रता के झूले में बैठ
ठहाके लगाएँगे।

अच्छा सुनो!
चलते वक़्त न तो
अलविदा कहना
न ही हाथ हिलाकर
अचानक मुड़ जाना
मेरी आँखों में देखना
बच्चे की तरह मुस्कान बिखेर
दोबारा आने का
पक्का वादा कर जाना
ताकि मैं इंतज़ार में रहूँ
और तुम किसी रोज़
फिर अचानक आकर 
मेरे कान में कहो
लो! मैं आ गया
और हम फिर से 
अतीत में जाकर
पुरज़ोर ठहाके लगाएँ।

राजेश 'राज' - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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