मित्र - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

मित्र तुम्हारा हृदय सिन्धु है तुम नाविक हो वह पतवार,
साथ तुम्हारे रह कर करता भंवर और भवनद को पार।
क्षीर-नीर का वही विवेचक यक्ष प्रश्न हल करने वाला–
भूल 'अंशुमाली' मत जाना वही जीवनी चिर आधार।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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