वक़्त यूँ ज़ाया न कर - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल

मसर्रतों की तलाश में अपनों से ख़ुद को यूँ पराया न कर,
बेशक़ गर्दिश भरा है सफ़र, तू चल वक़्त यूँ ज़ाया न कर।

हाँ, मिल ही जाएगी मंज़िल, ज़रा ख़ुद पर एतबार तो रख,
अमीरी नहीं, ना सही, बज़्म में ग़ुर्बत यूँ दिखाया न कर।

वक़्त ऐसा भी आएगा, ज़माना मुरीद होगा तेरे जवाब का,
कशिश वो पैदा कर, बस ख़ुद पर सवाल यूँ उठाया न कर।।

गर ख़्वाईश है दिल में, कुछ बेमिसाल कर गुज़र जाने की,
ख़ुद पर कर यक़ीं, बिखर जाने का ख़्याल यूँ लाया न कर।

गर जुनून चाह में हो,  कायनात को भी ना-गवारा तो नहीं,
तू चाह की गवाही तो दे, वगरना चाह को यूँ जताया न कर।

मुमकिन है हर गाम पे तेरे हौसलों का इम्तिहान बेशुमार हो,
कोशिशें भी तेरी बेइंतहा हो, तू चल हौसला यूँ गँवाया न कर।

उतर दरिया में 'सुनील', बैठ किनारे मुश्किलें यूँ गाया न कर,
उथले-उथले ही सही, तैराकी से ख़ुद को यूँ बचाया न कर।

सुनील खेड़ीवाल - चुरू (राजस्थान)

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