दुखों की थी जो काली रात,
हँसी के जो सूखे थे हर इक पात,
मुसीबत थे घने बादल,
जो कोहरा ग़म का था छाया,
फिर सुबह हुई सबकी
उम्मीदें हुईं पैकर,
लेके धूप और उजाला,
तिमिर का हनन करने को,
फिर से तिमिरारि निकल आया।
श्याम नन्दन पाण्डेय - मनकापुर, गोंडा (उत्तर प्रदेश)