बुरा वक़्त - कविता - श्याम नन्दन पाण्डेय

दुखों की थी जो काली रात,
हँसी के जो सूखे थे हर इक पात,
मुसीबत थे घने बादल,
जो कोहरा ग़म का था छाया,
फिर सुबह हुई सबकी
उम्मीदें हुईं पैकर,
लेके धूप और उजाला,
तिमिर का हनन करने को,
फिर से तिमिरारि निकल आया।

श्याम नन्दन पाण्डेय - मनकापुर, गोंडा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos