आ भी जाओ - कविता - कमला वेदी

आ भी जाओ तुम लौटकर
मैंने मन्दिर सा घर सजाया है।
रंगीन पुष्पों और दिखावे से नहीं
हृदय को पुष्प बन बिछाया है।

पल-पल सींचा आँसुओं से
प्रेम की छोटी सी बगिया को मैंने।
शबरी की तरह सजाया है
अपनी दिल की कुटिया को मैंने।

अब लौटकर आ भी जाओ
मैंने गीत मधुर प्रीत का गाया है।
टूटे हुए हृदय के तारों में
फिर से मिलन का साज सजाया है।

बरस बीत गए पिया पथ
तुम्हारा निहारते-निहारते।
जीवन बीता जा रहा तुम्हारे 
नाम का मंत्र जाप करते-करते।

कंचन काया कुम्हलाने लगी
हृदय का धीरज टूट आया है।
आ भी जाओ मेरे प्राण 
मैंने आश का दीप जलाया है।

कमला वेदी - खेतीखान, चम्पावत (उत्तराखंड)

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