रावण, ज्ञान और अधर्म - लेख - सिद्धार्थ 'सोहम'

रावण, लंकेश, दशानन इत्यादि नामों से प्रसिद्ध ऋषि पुलस्त्य का वंशज, वेदांग का ज्ञाता, भक्ति और शक्ति में लीन, परम प्रतापवान नीति पारंगत, यह कुछ विशेषताएँ रावण की जीवन का चरित्र तो बताती है पर सम्पूर्ण जीवन नहीं।
लंकाधिपति रावण कालक्रम से राक्षस यानि असुर बन गया और धीरे-धीरे रावण के दुर्गुणों का प्रचार प्रसार होता चला गया। आज भी रावण के पुतले जलाए जाते हैं, क्या रावण का चरित्र इतना ही निकृष्ट है?
वह रावण जो आयुर्वेद, ज्योतिष, कर्मकांड, धर्म एवं राजधर्म इत्यादि से पारंगत है क्या वह अधम कोटि का व्यक्ति है? 
कुछ धर्मांध लोगों ने रावण के चरित्र को विकृत किया है, रावण का महत्व शायद शिव स्त्रोतम का पाठ करने वाले समझ सकते हैं।

तो समझते हैं स्वयं भगवान राम से कि कौन है रावण? 
भगवान राम ने जब रावण का वध कर दिया तब लक्ष्मण से बोले "रावण ने भले ही अधर्म का रास्ता चुना हो पर रावण एक महात्मा, ब्राह्मण और महाज्ञानी है, लक्ष्मण तुम्हें उससे सीख लेनी चाहिए।" लक्ष्मण रावण के पास जाते हैं और कहते हैं कि "हे! लंकेश अपने ज्ञान से मुझे सुशोभित करो।" पर रावण मुँह फेर लेते हैं फिर यह बात राम को बताते हुए लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं पर राम उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि "तुम्हें उनके पैरों के पास जाकर ज्ञान लेना चाहिए।" लक्ष्मण वैसा ही करते हैं इस बार रावण उन्हें नीति शास्त्र का ज्ञान देते हैं। 

एक प्रसंग और मिलता है जब रावण मरणोपरांत विभीषण का राजतिलक भगवान राम करते हैं तो विभीषण को बतलाते हुए कहते हैं कि "मैं अयोध्या वापस नहीं चाहता चाहता हूँ मै हिमालय में जाकर तप करना चाहता हूँ क्योंकि मैंने एक ऐसे व्यक्ति का वध किया है जो महाज्ञानी, शास्त्रों का महाज्ञाता एवं उच्च कोटि का ब्राह्मण था।" ऋषि अगस्त्य ही उन्हें बताते हुए कहते हैं कि "तुमने एक ब्राह्मण का नहीं, एक अधर्मी का वध किया है और धर्म की स्थापना की है, अतः  राम तुमने वह किया जो नियत निर्धारित था।"

आज के परिपेक्ष में रावण:
आज भगवान राम प्रासंगिक है क्योंकि उनके समक्ष रावण जैसा बलशाली और शौर्यवान व्यक्ति था।
उस समय रावण था इसीलिए आज राम प्रासंगिक हैं।
ये बात वैसी ही है जैसे अजमेर शरीफ जाने वाले लोग भगवान पुष्कर (ब्रह्मा जी) के मंदिर नहीं जाते क्योंकि उनके समक्ष रावण जैसा कोई बलशाली नहीं था। 

आज आप शिव भक्त हो सकते हैं, शिव की आराधना करते हैं, शिव स्त्रोतम पढ़ सकते हैं पर रावण जैसे कभी नहीं हो सकते क्योंकि जो व्यक्ति शिवभक्ति में अपना सिर काटकर चढ़ा दे उससे बड़ा भक्त शायद ही कोई हो।

आप ब्राह्मण हो सकते हैं पर रावण जैसे नहीं हो सकते क्योंकि उसने रामेश्वरम में अपना कर्तव्य निभाते हुए रुद्राभिषेक कराया जो स्वयं प्रभु श्री राम ने किया था।

आप अपने केवल ज्ञान के दम पर ताक़तवर नहीं बन सकते या फिर यूँ कहें कि ज्ञान के दम पर ताक़तवर बनना काफ़ी मुश्किल है पर यह रावण ने कर दिखाया जिसने अपने ज्ञान और शौर्य के दम पर अपना राज्य लंका से लेकर इंडोनेशिया तक विस्तृत कर दिया और अपने प्रभुत्व का झंडा पूरी दुनिया में लहराया।

आप देवताओं को प्रसन्न करके उनके भक्त हो सकते हैं पर रावण केवल भक्त मात्र नहीं था उसने अपनी भक्ति से देवताओं तक को बंदी बना लिया था जिसमें शनिदेव भी थे।

इन बातों में रावण का बखान है पर रावण जैसा अधर्मी व्यक्ति किसी के लिए प्रेरणा स्रोत नहीं हो सकता क्योंकि यदि आप सनातनी है तो रावण आपका आदर्श नहीं हो सकता लेकिन अगर रावण आपका आदर्श है तो माफ़ कीजिएगा आप सनातनी नहीं है। 

यदि आज रावण ज़िंदा होते तो रावण दहन पर वह कुछ प्रश्न जरूर पूछते:
१. राम ने रावण का वध किया ये समझ में आता है, लेकिन वो आज के मनुष्यों से पूछ सकते हैं:
जलाते हो मुझे क्या तुम भी सही हो?
क्या जो राम थे सच में तुम भी वही हो?

२. अगर रावण दुराचारी था तो क्यों बहू बेटियों की इज़्ज़त आज तक ताक पर है? क्यों हैवानियत आज तक साख पर है? 
ऐसे कई प्रश्न है जो रावण दहन की प्रासंगिकता को आज अपेक्षित कर देते हैं। 

सनातन के दो अनुयायी: राम और रावण:
वास्तविकता में राम और रावण की तुलना नहीं हो सकती क्योंकि राम यदि शान्त हैं तो रावण क्रोधी, राम यदि मर्यादित है तो रावण अमर्यादित जिसने माता सीता का हरण किया, राम यदि सन्यासी तो रावण भोग-विलासी, राम यदि सत्यता, त्याग और धर्म के प्रतिक तो रावण छल-कपट और अधर्म का प्रतिनिधि, राम यदि धर्म स्थापित करने वाले तो रावण अधर्म की स्थापना हेतु आकाश और पाताल को मिला देने की इक्षा रखनेवाला, राम यदि सदाचारी तो रावण अहंकारी और अहंकार इतना की राज पाठ और जिस कुल पर इतना इतराता था वह सब कुछ जलकर ख़ाक हो गया। 

तो आज भी हमारे बड़े हमें ज्ञान देते हुए कहते हैं कि "जब घमंड रावण का नहीं चला तो हम तो उसके सामने कुछ भी नहीं"
राम और रावण की तुलना वैसी ही है जैसे धर्म की तुलना अधर्म से। 
लेकिन कुछ भी हो आज कोई भी व्यक्ति रावण को भले ही कुछ कहे पर ज्ञान में उसका कोई सानी नहीं पर इसका मतलब यह नहीं कि रावण राम से बड़ा हो गया क्योंकि राम वह है जिसमें पूरी सृष्टि समाई है और रावण वह जो सृष्टि को ही ख़त्म करना चाहता था। रावण था तभी राम का जन्म हुआ, या फिर यूँ कहें की रावण था तभी राम आज प्रासंगिक हैं। तभी तो रावण यह कहा करता था कि "यदि राम नर है तो वह मुझसे आज मारे जाएँगे यदि नारायण है तो मैं उनके साथ अमर हो जाऊँगा।"

अगर लंकेश आज के समय में अपने आप को  शायद इन पंक्तियों के सहारे स्पष्ट करते कि:
“संक्षिप्त जीवन हूँ मरकर अमर मैं
महा बुद्ध ज्ञानी का हूँ पराक्रम मैं
लिखा जाएगा राम के साथ मुझको 
पढ़ी जाएगी राम की जीत मुझ पर।

था हिमालय के जैसा अटल मेरा निश्चय,
याद जब भी करोगे राम के नाम को तुम,
देते रहोगे मेरा संक्षिप्त परिचय॥”

तभी तो रावण ने कहा:
“एको अहम्, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति
या फिर आज के सन्दर्भ में कहें:
एको ब्रह्मनः, न भूतो न भविष्यति।।”

सिद्धार्थ 'सोहम' - उन्नाओ (उत्तर प्रदेश)

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