मुझे साथ रहने दो - कविता - संजय कुमार चौरसिया

कश्ती डूब जाने दो,
किनारा साथ रहने दो।
समन्दर सूख जाने दो,
रेत के साथ बहने दो।

न आया बसंत तो जाने दो,
पर पतझड़ साथ रहने दो।
कली झुलस गई तो क्या,
मगर शाख़ को साथ रहने दो।

चाँदनी साथ न हो तो,
नक्षत्र साथ रहने दो।
दूर सूरज को जाने दो,
तारों से बात करने दो।

किसी को ज्ञानी होने दो,
मुझे अज्ञान रहने दो।
उन्हें अहं में जीने दो,
मुझे एक साथ रहने दो।

कोई चिंतन में जीने दो, 
कोई आज़ाद रहने दो। 
एकता नाम है जिसका, 
सदा एक साथ रहने दो।

कश्ती डूब जाने दो,
किनारा साथ रहने दो।

संजय कुमार चौरसिया - उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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