कर दो - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी

प्रश्न माना है कठिन पर इसका भी समाधान कर दो।

प्रेम पाश में उलझ-उलझ कर,
जकड़ गया है तन-मन सारा।
मोह और मोहब्बत में बस,
उलझ गया है जीवन सारा।
प्रेम शब्द की परिभाषा को अब तो तुम आसान कर दो,
प्रश्न माना है कठिन पर इसका भी समाधान कर दो।

प्रेम-धार के कठिन प्रहार से,
नाज़ुक दिल जख़्मी होता है।
वैसे तो लगता है तुमको,
के मेरा दिल कम ही होता है।
गर समाधान कुछ कर न सको तो इसको तुम पाषाण कर दो,
प्रश्न माना है कठिन पर इसका भी समाधान कर दो।

मौन अधर पर अंकुश मन का,
कम ही अब लग पाता है।
ख़्वाब मयूरा घनघोर नींद से,
अब हर दम जग जाता है।
हर अधूरे ख़्वाब में तुम पूर्णता का व्यवधान कर दो,
प्रश्न माना है कठिन पर इसका भी समाधान कर दो।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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