सात जन्मों के सातों वचन - कविता - शालिनी तिवारी

बढ़ रहे हैं दो अजनबियों के क़दम,
लेने सात जन्मों के सातों वचन,
दोनों के दिलों में है यह उलझन,
क्या निभा पाएँगे सात जन्मों के सातों वचन?

मैं रूठूँ तो तुम मना लेना,
तुम रूठो तो मैं मना लूँगी,
ऐसे बन जाएँगे हम हमदम,
निभा लेंगे सात जन्मों के सातों वचन।

हो अगर ग़लती समझाकर माफ़ कर देना तुम,
तुमसे हुई ग़लती समझाकर माफ़ कर दूँगी,
ऐसे बन जाएँगे हम हमदर्द,
और निभा लेंगे सात जन्मों के सातों वचन।

ना मैं तुमसे कोई राज़ रखूँगी,
ना तुम मुझसे कोई राज़ रखना,
ऐसे बन जाएँगे हम हमराज़
और निभा लेंगे सात जन्मों के सातों वचन।

मैं तुम्हारे परिवार की बेटी बन जाऊँगी
तुम मेरे परिवार का बेटा बन जाना,
ऐसे बन जाएँगे हमारे संबंध,
और निभा लेंगे हम सात जन्मों के सातों वचन।

ज़िन्दगी के सफ़र में जब भी मैं,
थक जाऊँ तुम मेरा हाथ थाम लेना,
और अगर तुम थक जाओ,
तो मैं तुम्हारा हाथ थाम लूँगी,
ऐसे बन जाएँगे हम हमसफ़र
और निभा लेंगे सात जन्मों के सातों वचन।

दुनिया की भीड़ में तुम बन जाना मेरा साया,
मैं बन जाऊँगी तुम्हारा साया,
ऐसे बन जाएँगे हम हमसाया,
और निभा लेंगे सात जन्मों के सातों वचन।

रिश्तो के बंधन में ना मैं कभी मेरा मेरा करूँगी,
ना तुम कभी मेरा-मेरा करना,
क्योंकि अब बन जाएँगे 'हम'
और निभा लेंगे सात जन्मों के सातों वचन।

शालिनी तिवारी - अहमदनगर (महाराष्ट्र)

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