शब्द तुम्हारे ज़रूर मिलेंगे - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी | हिंदी भाषा पर कविता

ऐ हिन्दी! तुम्हारी बदौलत, बहुतों ने पाई है शोहरत,
हर ओर तुम्ही तुम रहो सदा, हमारी है बस इतनी चाहत। भाषाओं की कठिन डगर में, हम नहीं खड़े मजबूर मिलेंगे,
विश्व के किसी भी भाषा में, शब्द तुम्हारे ज़रूर मिलेंगे।

भारत के हर भाषाओं में, हर जीवंत आशाओं में,
सम्पूर्ण विश्व में फैली हुई, मानवता की परिभाषाओं में,
शब्द तुम्हारे ज़रूर मिलेंगे।

चाहे बच्चे की बोली हो या इशारों में कोई पहेली हो,
प्रेम भाव से ओत -प्रोत, आँखों की अठखेली हो,
शब्द तुम्हारे ज़रूर मिलेंगे।

कल, परसों और आज में, हर एक मनहारी साज में,
गौरैया, तोते और हंस सहित, कोयल की मीठी आवाज़ में,
शब्द तुम्हारे ज़रूर मिलेंगे।

जाड़ा, गरमी, बरसात में, सुबह, दोपहर और रात में,
घनघोर बादलों के दरम्यान, जुगनुओं की बड़ी बारात में,
शब्द तुम्हारे ज़रूर मिलेंगे।

जल, थल और नभ में, दुर्लभ से भी दुर्लभ में,
पशु, पक्षियों, और पेड़ों के, प्रकृति प्रदत्त स्थान सुलभ में,
शब्द तुम्हारे ज़रूर मिलेंगे।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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