गणपति - कविता - जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद'

जय गणपति गजानन।
हर लो सबके दुःख,
कर दो आनन-फ़ानन।।
क्योंकि
शुरू करे सभी काम।
लेकर श्री गणपति नाम।।
हे! विघ्नहरता, हे! दुःख हरता।
खाली झोलियाँ है तू भरता।।
इसलिए
मिटे सबके क्लेश।
रखना अपना आशीष,
जय जय गणपति गणेश।।
हो तुम ही प्रथम पूज्य।
रिद्धि सिद्धि के दाता,
ना कोई ओर सम तेरे दुज्य।।
चाँद सूरज भी करे आरती।
कर शृंगार ये धरती तुम्हें ही पुकारती।।
इसलिए
बसे रहो अंग संग मेरे।
गाती रहेगी ज़िन्दगी,
अनसुने गुण तेरे।।
अंत यही कहता है दास।
है यही प्रार्थना,
है यही अरदास।।

जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद' - छावनी टोंक (राजस्थान)

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