सैयद इंतज़ार अहमद - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)
दीमक - कविता - सैयद इंतज़ार अहमद
सोमवार, सितंबर 19, 2022
कभी अपनों को ठगता है,
कभी ग़ैरों को छलता है।
ये कलयुग का दरिंदा है,
किसी का भी न रहता है।
है जब तक फ़ायदा तुमसे,
ये तुमसे चिपका रहता है।
निकलते ही तुमसे मतलब,
तुमसे मुँह फेर लेता है।
तुम्हारे साथ ये रह कर,
तुमको मिसयूज करता है।
करो जो फ़ैसला कोई,
तुमको कन्फ्यूज़ करता है।
इन्हें पहचान लो जल्दी,
तुम्हारे साथ रहता है।
किया जो देर गर तुमने,
तो तुमको काट खाता है।
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