वाणी से ब्रह्म की ओर - कविता - विनय विश्वा

मानुष की पहली 
माकूल 'मुक्तक'
स्वर की सुरीली
ध्वनियों से ध्वनित
शैशव की है ये स्वर वाणी
ऊँ, आ आ, ...हून,
सृजन की समर्थता की है अमरता
वाणी की वाग्धारा के
चतुष्टय लड़ियाँ
परा, पश्यन्ति, मध्यमा, बैखरी
है ये संसार की सारिणीयाँ।

'मध्यमा' मानव चिंतन के चैतन्य में
पश्यंति ने भाषा को देखा
ज़ुबाँ पर वाणी बन 'बैखरी'
सगरी सृजन की लेखा।

मन, इच्छा-प्रधान, अग्निसदन, पृथ्वी, तेज़,
बुद्धि, ज्ञान-प्रधान, वरुण, अंतरिक्ष, विद्युत सेत।

प्रतिभा, क्रिया-प्रधान, सूर्य, मित्र, द्युलोक
परा की चिंतन धारा में
खुल जाए ब्रह्मलोक
खुल जाए ब्रह्मलोक।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

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