तिरंगा कफ़न चाहिए - कविता - आर॰ सी॰ यादव

नहीं चाह तन की, ना धन चाहिए,
सुरक्षित धरा व गगन चाहिए।
लिया जन्म जिसमें, मेरी मातृभूमि,
हिफ़ाज़त करूँ, यह लगन चाहिए।।

सींचा लहू से ज़मीं को है हमने,
जश्न-ए-आज़ादी दिया हमको जिसने।।
रणबांकुरों की शहादत की ख़ातिर,
वीरों को श्रद्धासुमन चाहिए।।

ऊँचा हिमालय बना जिसका प्रहरी,
गंगा-जमुन की पतित पावन लहरें।
सागर सा गहरा भरा जोश मन में,
निर्भय निडर बस हृदय चाहिए।।

धर्म व मज़हब की ना हों दिवारें,
रहे तो रहे बस यहाँ भाईचारे।
खिले फूल जिसमें दया-प्रेम-हित के,
सुंदर सा प्यारा चमन चाहिए।।

खेतों में उपजे सदा हीरे-मोती
धन-धान्य समृद्ध वतन चाहिए।
मिले हर किसी को यहाँ सुख की रोटी,
सुख-शांति एक अमन चाहिए।।

समर्पित सदा राष्ट्र के प्रति यह तन हो,
ना कोई हो इच्छा, ना वसन चाहिए।
जिएँ तो जिएँ मातृभूमि पर अपने,
मरूँ तो तिरंगा कफ़न चाहिए।।

आर॰ सी॰ यादव - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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