प्रतीक्षारत - कविता - संजीव चंदेल

रातरानी रात भर करती रही इंतज़ार,
चाँद सारी रात तेरे लिए रहा बेकरार।
मैं तेरी याद में लिखता रहा ग़ज़ल,
फिर भी तू ऐ सनम! आई नहीं नज़र।

चाँद सारे तारे थक के बेचारे सो गए,
सबके अधरों से कलहास न जाने कहाँ खो गए।
अमर पान भी करूँ तो लगे जैसे गरल,
फिर तू ऐ सनम! आई नहीं नज़र।

संजीव चंदेल - अकलतरा (छत्तीसगढ़)

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