शिवानी कार्की - नई दिल्ली
अँगूठी का निशान - कविता - शिवानी कार्की
सोमवार, अगस्त 29, 2022
उसके गाल पर निशान है आज
शायद अँगूठी का हैं,
वो ज़रा ख़ुश हैं आज अपने ऑफ़िस में,
सबको बता रहा हैं
शिकवा नहीं हैं उसको,
बड़ा गर्व जता रहा हैं।
कहता झगड़ा हुआ हैं कल मेरा
मेरी पत्नी से पहली बार,
मैं ग़ुस्सा हुआ उस पर।
कहने लगा क्या ज़रूरत हैं तुम्हें काम करने की,
क्या ज़रूरत हैं पैसों की,
ये दफ़्तरी बीबी का भेष धारण करने की।
वो कहती...
तुम भी तो जाते हो तो मैं क्यों नहीं?
तुम भी कमाते हो तो मैं क्यों नहीं?
बात पैसों की नहीं इज़्ज़त की हैं,
तुम पाते हो तो मैं क्यों नहीं?
मैं लिख भी सकती हूँ,
लिखावट गढ़ भी सकती हूँ,
मैं एक लड़की हूँ,
लड़ भी सकती हूँ।
बस सुनते ही जल उठा
मेरे अंदर का अहंकार,
पितृसत्तावादी सोच को लगा प्रहार,
मैंने ग़ुस्से में जड़ दिया उसको एक तमाचा,
यह सोचकर कि अब नहीं बोलेगी।
मगर वो तो बोली और बोली ही नहीं,
उसने करके दिखाया,
मैंने भी वही तमाचा,
अपने गाल पर पाया।
तब हिला मेरे अंदर का जड़ पत्थर,
काँपी मेरी क्रूर आत्मा भीतर ही थरथर।
सोचने लगा यह तमाचा कभी मेरे मुँह पर ना पड़ा होता,
अगर काश बचपन में मेरी माँ ने यह तमाचा पहले मेरे मुँह पर जड़ा होता॥
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर