सावन की बौछार - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी

सावन की बौछार यार
तन-मन को भिगाती है,
मस्त फुहारें इस सावन की
याद किसी की दिलाती है।

सावन के झूले अब तो
हर ओर निहारा करतें हैं,
कोई तो आकर के झूले
रोज़ पुकारा करते हैं।
पेड़ की डाली भी ख़ुद से
अब ऊपर नीचे आती है,
मस्त फुहारें इस सावन की
याद किसी की दिलाती है।

कजरी वाले गीत गुम हुए
कोयल भी बेज़ुबान हुई,
अबके सावन की बारिश भी
बस कुछ दिन की मेहमान हुई।
आया करो प्रीत बरसाने
धरती सावन को सिखाती है,
मस्त फुहारें इस सावन की
याद किसी की दिलाती है।

त्यौहार नहीं त्यौहार के जैसे
अब सावन में लगते हैं,
मौसम की है दोमुही मार
बस बादल रोज़ गरजते हैं।
प्रकृति भी अब तो धरा पर
प्रीत को कम बरसाती है।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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