अरकान : फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती : 212 1222 212 1222
रात भर चराग़ों की लौ से वो मचलते हैं,
नींद क्यों नहीं आती करवटें बदलते हैं।
भीड़ क्यों जमा की है चाँद ने सितारों की,
जुगनुओं की बस्ती में चाँद सौ निकलते हैं।
आप तो छुआ करते ख़ार भी नज़ाकत से,
आजकल हुआ क्या है फूल को मसलते हैं।
जाइए जला दीजे दीप उस अँधेरे में,
तब तलक हवाओं की सम्त हम बदलते हैं।
इस ज़मीं को रहने दो थोड़ी खुरदरी सी भी,
बारिशों में बच्चों के पाँव भी फिसलते हैं।
होंट हो गए उनके जलके लाल शोलों से,
बात वो नहीं करते आग सी उगलते हैं।
मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)