प्रेम - कविता - स्नेहा

प्रेम कहाँ अधूरा होता हैं
हँसी, ख़ुशी
प्यार, पागलपन
एहसास...
सब कुछ तो मिल जाता हैं।
कभी प्यारी सी मुस्कान तो
कभी प्रेम से भरी हुई आँखे
मिलन-विरह
रूठना-मनाना
प्रेम देना सिखाता हैं
प्रेम झुकना सिखाता हैं
प्रेम मिटना सिखाता हैं
प्रेम प्यारा बनाता हैं।
प्रेम बसंत लाता हैं
प्रेम बहार लाता हैं
प्रेम बरसात भी लाता हैं
प्रेम मैं को "तुम" बनाता हैं
प्रेम में तो ईश्वर भी मिल जाता हैं
इतना कुछ तो देता हैं ये प्रेम...
प्रेम कहाँ अधूरा होता हैं
और जो अधूरा होता हैं 
वो प्रेम नहीं होता
प्रेम का होना ही संपूर्णता हैं।

स्नेहा - अहमदनगर (महाराष्ट्र)

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