माटी तेरी चन्दन है - बाल कविता - हनुमान प्रसाद वैष्णव

भारत माँ तेरे चरणो में हम बच्चों का वन्दन है।
जल तेरा अमृत की धारा माटी तेरी चन्दन है॥

तेरे आँचल की छाया में माता हमने जन्म लिया।
फूले फले खिले सब प्राणी तेरा ही तो नीर पीया॥
जीवन सबका तुझ पर निर्भर, तू ही तो अवलम्बन है।
जल तेरा अमृत की धारा...॥

अत्याचार किया मानव ने तेरे वृक्ष विनासे है।
ज़हर किया अमृत से जल को अब सब प्राणी प्यासे है॥
माटी को भी ग्रहण लगाया दूषित वायुमण्डल है।
जल तेरा अमृत की धारा...॥

जब जब कुपित हुई धरती माँ तब तब जन संहार किया।
अतिवृष्टि, अकाल, महामारी, भूकम्पों ने लील लिया॥
जल थल नभचर आहत है सब साँसों में अब क्रन्दन है।
जल तेरा अमृत की धारा...॥

धरती पर हो पेड़ कहीं वो सब की सेवा करते है।
वृक्ष और वायुमण्डल सीमाओं में नहीं बँधते है॥
इस समदरशी वृक्ष देव के श्री चरणों में वन्दन है।
जल तेरा अमृत की धारा...॥

धरती माँ सौगन्ध तुम्हारी अपना फ़र्ज़ निभाएँगे।
सागर और सरिता के जल को मिल कर स्वच्छ बनाएँगे॥
वन लौटाएँगे तुझको जो जीवन का स्पन्दन है।
जल तेरा अमृत की धारा...॥

हनुमान प्रसाद वैष्णव - सवाई माधोपुर (राजस्थान)

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