बस यही सोचता हूँ - कविता - शैलेश विश्वकर्मा

अब परिवर्तन कर ही लूँगा
बस यही सोचता हूँ,
बचपन बीता मुश्किलों में
जवानी बीत रही है भँवरजाल में,
सोचता हूँ तो घिर जाता हूँ
अपने ही विचारों में।
अब परिवर्तन कर ही लूँगा
बस यही सोचता हूँ,
कभी हताश, कभी निराश, कभी उत्साहित होता हूँ,
मन हवा सा रूख बदलता है
अस्थिरता है जो मुझमें,
थोड़ा भँवरजाल मे फँसता हूँ
फिर अपने ही विचारो को टटोलता हूँ,
अब परिवर्तन कर ही लूँगा
बस यही सोचता हूँ। 

शैलेश विश्वकर्मा - रामनगर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos