फिर नई शुरुआत कर तू - कविता - शाह सुमित जय कुमार

भूल कर सारी कमी,
फिर नई शुरुआत कर तू।
भय को पीछे छोड़ दे,
फिर नई हुंकार भर तू।

सोच जो नीचा करे उस,
सोच को इन्कार कर तू।
दूसरों को भूल कर अब,
स्वयं को स्वीकार कर तू।

है नहीं यहाँ मान सबका,
स्वयं का सम्मान कर तू।
मुश्किलें आएंँ वो जो भी,
स्वयं ही संहार कर तू।

बैठ न जाना कभी यूंँ,
ज़िन्दगी से हार कर तू।
स्वयं पर विश्वास करके,
फिर नई शुरुआत कर तू।

शाह सुमित जय कुमार - सोनगढ़, तापी (गुजरात)

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