नारी स्वाभिमान - कविता - ज्योति सिन्हा

दिल चाहता है कलम उठा कर,
लिख दे आज अपनी तक़दीर,
आज जो जीवन हमें मिला है,
पसंद नहीं हमें ये हमारी तस्वीर।
हम अपनी बाबुल की बिटिया,
वह समझ बैठे अपनी जागीर,
दिल चाहता है कलम उठा कर
लिख दे आज अपनी तक़दीर।

खोती है तो खो ही जाने दो ना,
क्या करना ऐसे रिश्तो का मान,
मुँह पर मिठास टपकाती ज़ुबान,
पीछे से दुश्मनी करते वो नादान।
कब तक रहे हम बनें अनजान,
हमें चाहिए अब अपना सम्मान,
जन्म लिया एक नारी के गर्भ से,
पग-पग बढ़ाना नारी स्वाभिमान।

कहती रही है कहती ही रहेगी,
नहीं समझेगी दुनियाँ हमरी पीर,
हम हँसेंगे तो वो भी मुस्कुराएगी,
पर हमारे संग ना बहाएगी नीर।
हम पर उँगली उठाएगी बन भीड़
पसंद नहीं हमें ये हमारी तस्वीर,
दिल चाहता है कलम उठा कर,
लिख दें आज अपनी तक़दीर।

ज्योति सिन्हा - मुजफ्फरपुर (बिहार)

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