खोल के देखो झरोखा, प्रेम है आता सखे।
प्रेमियों का पर्व प्यारा, गीत है गाता सखे।।
मौन भाषा नैन बोलें, तार वीणा के बजे,
चुम्बकी बातें रिझाती, मोह धागे हैं सजे।
देख के मैं मुस्कुराऊँ, पास बैठो तो यहाँ,
खोल सारी ग्रंथियों को, वेदना आओ तजे।
ये उदासी को भुला के, मोद है लाता सखे।
प्रेमियों का पर्व प्यारा, गीत है गाता सखे।।
रात आधी चाँद आधा, चंद्रिका ढूँढ़ें पता,
मोगरे की गंध आती, मालती झूमे लता।
रंग छाया पल्लवों पे, पुष्प छूते गाल को...
रात रानी भी खिली है, दूर होके ना सता।
प्रेम की वर्षा सुहानी, भीगना भाता सखे।
प्रेमियों का पर्व प्यारा, गीत है गाता सखे।।
ये गुलाबों की प्रतीक्षा, पूर्ण होगी क्या कभी,
याद हैं वादे गुलाबी, पूंछती शामें सभी।
मूर्त होंगे स्वप्न सारे, नैन में जो आ बसे,
आ जला दे वर्तिका को, आस है बाक़ी अभी।
छोड़ के संसार जोड़ा, नेह का नाता सखे।
प्रेमियों का पर्व प्यारा, गीत है गाता सखे।।
शुचि गुप्ता - कानपुर (उत्तरप्रदेश)