निभा फ़र्ज़ अपना मनुज - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

क़र्ज़ चुका सब स्वार्थ में, नहीं बड़ा सत्काम।
दिया जन्म अस्तित्व जो, पिता मातु सम्मान।।

पूत रहे सुख चैन से, मातु पिता नित चाह।
हो पूर्ण नहीं उऋणता, जन्मों में चल राह।।

रात दिन रह कर्मपथ, मिटा स्वयं सुख चैन। 
प्रगति सुयश सुत देखकर, पिता जुड़ाते नैन।।

जीवन भर संघर्ष कर, किया पूत निर्माण।
चढ़े शिखर उत्थान का, करो पिता कल्याण।।

सही प्रसूति की वेदना, करा क्षीर उर पान।
छिपा छाँव आँचल तले, बिठा पलक सुत शान।।

नीर नैन पावन तनय, सही तड़प जगदम्ब।
निष्कामी दी ज़िंदगी, मातु बनो अवलम्ब।।

सुत निकुंज मन वेदना, नहीं निभाया फ़र्ज़।
जिनसे पाई ज़िंदगी, उतार सका न क़र्ज़।।

फ़र्ज राष्ट्र निर्माण का, नव उन्नति चहुँओर।
रक्षा नित सीमा वतन, भारत हो सिरमोर।।

जना पाल पोषित किया, मातृभूमि सुखधाम।
आन मान सम्मान दें, फ़र्ज़ निभा अविराम।।

पालक प्रेरक ज़िंदगी, दे जीवन नवजोत।
निभा फ़र्ज़ अपना मनुज, सामाजिक बन स्रोत।।

हो विकास चहुँ मुख वतन, हो समाज उत्कर्ष।
आज़ादी समता प्रजा, फ़र्ज़ निभा संघर्ष।।

सही राह कर्तव्य हो, निभा फ़र्ज़ परिवार। 
निभा धर्म समरथ वतन, फिर गुरुता संसार।।

मानवता अनमोल धन, नीति न्याय आचार।
संस्कार रक्षा कवच, निभा फ़र्ज़ अधिकार।।

संयम धीरज आत्मबल, राष्ट्र प्रेम हो चित्त।
प्रेम सुधा करुणा हृदय, क्षमा दया आवृत्त।।

बढ़ पौरुष परमार्थ पथ, रचो कीर्ति नीलाभ।
पूर्ण करो अभिलाष मन, बने फ़र्ज़ अरुणाभ।।


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