26 जनवरी करती सवाल - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'

देश में आज ख़ुशी का कोई एक घर ना था,
हर ठिकाना लग रहा बिल्कुल लालकिला था।

नज़र ने हर सम्त हर छोर हर साहिल तक देखा,
आसमाँ तो आसमाँ, ज़मीं की छतों पर भी नाच रहा तिरंगा था।

अक्सर पाठशाला और गाँव की चौपाल पर ज़िक्र सुना था,
देश में 26 जनवरी के दिन बाबा साहेब का संविधान लागू हुआ था।

माड़साब ने ख़ूब कहा, 15 अगस्त और 26 जनवरी से ही देश हमारा हुआ था।

लेकिन मैं आपसे सवाल करता हूँ कि ये कैसी आज़ादी है,
इसमें भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, क्षेत्रवाद, जातिवाद, महँगाई, भाई-भतीजावाद की आबादी हैं। 

और तो और परीक्षा पेपरों में हो रही धाँधली से देश की मुकम्मल बर्बादी है।

अब तो माँ भारती का धीरज हैं टूटा,
हो रही चहुँओर देशभर में आंदोलनों से इसकी उद्घोषणा,
पुकार रही माँ, उठो मेरे बच्चों, बनाओ 
मेरे हाल-ओ-मुस्तक़बिल की महफ़ूज़ योजना।

सरहद पर अब तो पाक, चीन के साथ देश में सियासत की गोलीबारी है,
शहादत पर भी होती राजनीति, देश में ये कैसी हिमाक़त जारी है।

देश बड़ी शिद्दत से चाहता हैं कि जले चराग़ मुफ़लिस के घर भी, 
पर आम आदमी के घर हो रहा अँधेरा, ये कैसा लोकतंत्र हावी है।

नेता तो चुनाव आते ही दलितों के घर खिचड़ी खाने जाते हैं,
और सद्भाव पर एक अच्छी सी पोस्ट फेसबुक और ट्विटर पर चिपकाते हैं।

मैं पूछता हूँ क्यों कहा जाता हैं हिंदुओ का बड़ा समुदाय दलित, 
शायद मुफ़लिसी का दूसरा नाम होता हैं दलित या पीड़ित। 

चुनावी रैलियों में विकास की बातें छोड़कर झूठे वादें सुनाए जाते हैं।
जाति-धर्म में बंटे वोट, हम क्यों वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ भूल जाते हैं।

जब मनुष्य की मशीन का रूप एक जैसा हैं, 
उस पर भी ईलाही ने हस्ताक्षर किया हैं लाल ख़ून का,
फिर क्यों हम कहते हैं मैं ऐसा हूँ तू वैसा हैं।

कोई भी सरकारी उपक्रम हो या हो 
किसी बाबू का ऑफ़िस,
परोपकार, सहयोग की बजाय भ्रष्टाचार बढ़ रहा हैं,
गरीब का पसीना उसके घर पर नहीं, स्विस बैंकों में सड़ रहा हैं। 

एक नेता ने भी क़बूल किया हैं ग़रीब खा रहा हैं हरी सब्जी,
तभी तो महँगाई पर इख़्तियार हमारा हट रहा हैं।

आबरू-इज्ज़त-आत्मा-रूह तक भी नोची गई महापुरुषों के देश में, 
जब भारत माँ की बेटियाँ ऐसा बोल रही हैं तो,
मैं आपसे पूछता हूँ,
इस देश का क्या होगा यही सवाल आत्मा को कचोट रहा हैं,
गाँधी जी को मारकर गोड़से को ज़िंदा किया जा रहा हैं,
हर जाति-मज़हब से भरे देश में नफ़रतों से विकास कैसे होगा,
इसलिए कवि आज आपसे, सबसे सवाल कर रहा हैं।।

कर्मवीर सिरोवा 'क्रश' - झुंझुनू (राजस्थान)

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