कवि निकुंज उद्गार हिय - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

सादर प्रमुदित नमन शुभ, हिन्दी वासर विश्व।
खिले चमन हिन्दी वतन, रहे मनुज अस्तित्व।।

शारद सरसिज सुरभिता, हिन्दी काव्य निकुंज।
कीर्ति सुरभि माँ भारती, शान्ति प्रीति अलिगुंज।।

पंचम स्वर पिक प्रगति चहुँ, आए नित मधुमास।
विश्व बन्धु मन भावना, पौरुष मुख मृदु हास।।

हिन्दीमय  दुनिया सकल, हिंद देश जयगान।
नीति रीति चहुँ न्याय पथ, आरोहण सोपान।।

हरित भरित श्यामल धरा, अरुणिम भारतवर्ष।
सुख वैभव मुस्कान यश, मधुरिम हो उत्कर्ष।।

गौरव हो निज वेद पर, संस्कृतियों पर नाज़।
मातृभूमि सीमान्त चहुँ, नवल शौर्य आग़ाज़।।

आश मनसि सत्कर्म पथ, भक्ति प्रीति हो देश।
समरस सद्भावन लसित, हिन्दी हो विश्वेश।।

अपनापन अनुबन्ध हो, सच्चरित्र समुदार।
तन मन धन अर्पण वतन, ध्येय सुपथ आधार।।

अरुणाचल कश्मीर तक, लहरे ध्वजा तिरंग।
शौर्य चक्र नीलाभ में, हो जय भारत संग।।

नमन विनत सेना वतन, परमवीर बलिदान।
निशि वासर रक्षक वतन, जय किसान विज्ञान।।

कवि निकुंज उद्गार हिय, ससंय मौन सुभाष।
समतामय करुणा दया, क्षमा शील अभिलाष।।

डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली

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