ज़मीन - कविता - रमाकांत सोनी

जो ज़मीन से जुड़े रहे संस्कार उन्हीं में ज़िंदा है,
देशद्रोही ग़द्दारों से हमारी भारत माता शर्मिंदा है।

हरी भरी हरियाली धरती बहती मधुर बयार ययाँ,
देशभक्ति दीप जले मन में जोशीले उद्गार जहाँ।

यह ज़मीं यह आसमाँ पर्वत नदियाँ लगे भावन,
अविरल बहती गंगधारा बलखाती सरिता पावन।

सोना उगले देश की धरती वीर वसुंधरा भारतमाता,
हिमालय स्वाभिमान से शान से तिरंगा लहराता।

जिस ज़मीं पर जन्म लिया रगों में रक्त का नाता है,
जय जननी जय भारती सरहद पे सिपाही गाता है।

वंदे मातरम वंदे मातरम गूँजे सभी फ़िज़ाओं में,
सरज़मीं मर मिटने वाले संदेशा देते हवाओं में।

ज़मीं अपनी आसमाँ अपना वतन अपना है प्यारा,
होली दिवाली सब गले मिले बहे सद्भावों की धारा।

रमाकान्त सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos