तरन्नुम - कविता - रेखा श्रीवास्तव

मेरी यादों में बसा जो चेहरा 
कहीं वो तुम तो नहीं,
मेरे ख़्वाबों में रहता जिनका पहरा 
कहीं वो तुम ही तो नहीं।
जिनकी यादों की आहटों से 
सिहर उठे ये रूह मेरी,
हर सिहरनों में भी पाकीज़ा
जो अहसास दिलाए तेरी,
समाया है जो मेरी धड़कनों में 
कहीं वो तुम तो नहीं।
मैंनें माँगा है जिसे ज़िन्दगी से
और पूजा है उसे बंदगी में,
अपने गीतों में सजाया है जिसे,
बनाकर तरन्नुम गाया है उसे,
हाँ वो कोई और ही नहीं 
वो तुम हो, तुम्हीं तो हो।।

रेखा श्रीवास्तव - नई दिल्ली

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