पहन लिए नए-नवेले कपड़े फिर से - कविता - अशोक बाबू माहौर

और ये पेड़ों की
हरी भरी पत्तियाँ झूमने लगीं
बाग बग़ीचे
फूल अनेक रंग बिरंगे
महक उठे
भँवरे तितलियाँ मँडराने लगे,
गाने लगीं हरित घास
नए पुराने गीत,
मंद हौले-हौले लहराती मस्तमौला सी
बनठन कर।
मानो साथ अपने बयार भी
लाकर बारिश की बूँदें तनिक
नहला रही हो छोटे बड़े पेड़ों को,
धीरे से, माटी को सुगन्धित बनाकर
फैला रही हो
अनन्त मनमोहक ख़ुशबू
जहाँ-तहाँ
कोसों दूर
और वातावरण में।
मुझे लग रहा है
आई है ऋतु नई
या पहन लिए कपड़े
वसंत ने
नए-नवेले फिर से।

अशोक बाबू माहौर - मुरैना (मध्यप्रदेश)

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