विनती प्रभु स्वीकार करो - मानव छंद - डॉ॰ आदेश कुमार गुप्ता पंकज

शरण आप की आया हूँ।
साथ न कुछ भी लाया हूँ।।
विनती प्रभु स्वीकार करो।
शीश पर अपना हाथ धरो।।

मैं अज्ञानी ज्ञान नहीं।
भूलों का है भान नहीं।।
पापी जग से हारा हूँ।
फिरता मारा मारा हूँ।।

दिखता नहीं किनारा है।
जग का नहीं सहारा है।।
गुमसुम बैठा रहता हूँ।
जीवन से मैं डरता हूँ।।

मेरी बगिया महका दो।
जीवन मेरा चहका दो।।
भव सागर से पार करो।
मेरे प्रभु उपकार करो।।

अंधकार का डेरा है।
मुझसे दूर सवेरा है।।
विपदाओं ने घेरा हैं।
मिलता नहीं बसेरा है।।

डॉ॰ आदेश कुमार गुप्ता पंकज - सोनभद्र (उत्तर प्रदेश)

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