तलाश - कविता - अर्चना कोहली

हताशा से दिल क्यों भारी है,
निराशा से क्यों की यारी है।
क्यों खोया है तुमने आस को,
क्यों इच्छा अपनी मारी है।।

पता नहीं कौन-सी उलझन है,
पल-पल टूटता मेरा मन है।
तलाश है किसकी मुझको,
बीत रहा बेरंग-सा जीवन है।।

कश्मकश में दिल ये बेचैन है,
तलाश में खोया हमने चैन है।
भटकते रहते हैं हम वन-वन,
ख़ुद-तलाश में बीती रैन है।।

तलाश से होते हो क्यों हताश,
क्यों हो जीवन से तुम निराश।
आँचल में भर लो रंग सतरंगी,
अच्छी सोच से कर ले तलाश।।

तभी ख़ुद की तलाश होगी पूरी,
तब खोज होगी न कभी अधूरी।
सोच के सही राह अख़्तियार कर,
लक्ष्य से तब होगी न कभी दूरी।।

इर्द गिर्द जीवन इसके घूमता रहता,
नवीन अनुभव से रोशन हमें करता।
ज़िंदगी है खोने-पाने का ही नाम,
मन में कुशल चितेरे-सा जोश भरता।। 

अर्चना कोहली - नोएडा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos