भारमल गर्ग - जालोर (राजस्थान)
विरह की अग्नि - कविता - भारमल गर्ग
गुरुवार, सितंबर 30, 2021
बिंदी माथे पे सजाकर कर लिया सोलह शृंगार।
प्राणप्रिय आपकी राह में बिछाई पुष्प वह पगार।।
शय्या पर भी चुनट पड़ी बोले सारी-सारी रात।
नींद भी नहीं आ रही जगन मिलन की बात।।
विरह वेदना तन को जलाएँ नहीं कोई उपचार।
प्राणाधार के साथ में मेरे जीवन का हैं आधार।।
मन की यह यन्तणा क्या बताऊँ सजाना आज।
ओष्ठ चंचल चल रहे, सारंगी बिखरे तय साज।।
क्षीर-क्षीर की खीर भी बनाई आपकी अबला।
राह चलते आज मिली थीं एक कुँवारी सबला।।
कई पहर बीत गए तकती हूँ प्रीत विहार के रास्ते।
चीं-चीं चूँ-चूँ से पुकारती है चिड़िया चिड़ा के वास्ते।।
पनघट पानी लेने गई सखियाँ मिली नदी के तट।
मन की बातें अधरो से कर रहीं पीर तीर खटपट।।
घर आँगन में बैठी बैठी चंदा को देखूँ हास विलास।
गायन वादन नृत्य करती रचती विरह में मधुमास।।
गीत सुनाती भँवरे उड़ा आती हूँ उस बगिया में आज।
पिया आपकी याद में तड़प रही हूँ रैन बसेरा में रात।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर