इसी का नाम जीना है - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

आशा मत छोड़ना
इसी का नाम जीना है।
हार से निराश नहीं होना
इसी का नाम जीना है।

यात्रा लम्बी हो
कंटकमय पंथ हो
ऊबड़-खाबड़ जलमग्न हो
चलते जाना है।

पीछे मुड़ कर मत देखना
इसी का नाम जीना है।

बाधाएँ रोकें
सामर्थ्य मत खोना
बढ़ते रहना
सुकरात सा जीने के
लिए।

अपमान का घूँट पीते रहना
इसी का नाम जीना है।

कोई छद्म के ताने-बाने बुने
साहस मत खोना
छलनाएँ मिलें
उन्हें देखना, छूना मत।

सत-पथ चलते रहना
इसी का नाम जीना है।

अपने जब साथ छोड़ दें
अकेलापन खाने को दौड़े
जीवन-पथ अंधकार से भरा हो
मृत्यु सामने खड़ी हो।

फिर भी धैर्य मत खोना
इसी का नाम जीना है।

उसे मत भूलना
जिसका यह संसार है
हाथ उठाकर उसे पुकारना-
अश्रुपूरित नेत्रों से।

आशा की किरण दिखेगी
इसी का नाम जीना है।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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