तिरंगा - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'

हो ऊँचा नाम जगत में,
झुकने ना पाए तिरंगा।
ना लड़े कोई मज़हब को,
मिटे जात-पात का दंगा।
निज मातृभूमि से बढ़कर,
कुछ नहीं पूजनीय दूजा।
निश्चय को बना लो हिमालय,
व्यवहार हो निर्मल गंगा।
जब बात देश की आए,
तब मोह तजो प्राणों का।
ये जान चली भी जाए,
लहराता रहे तिरंगा।

नृपेंद्र शर्मा 'सागर' - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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