नव सृजन करो तुम - कविता - कमला वेदी

ख़ामोशी की तह में
सिमट कर ना गुज़ारो ज़िंदगी, 
ग़ुंचा ग़ुंचा दिल खोलकर
पुष्पों की तरह खिलो तुम।

हँसते, गाते, खिलखिलाते 
अनमोल पलों को समेट लो,
बोझिल होकर ज़िंदगी के 
भार को यूँ ना सहो तुम।

सच्ची चाह हो गर तुममें तो 
पर्वत लाँघ सकते हो तुम,
बस थोड़ा सा आत्मविश्वास
अन्तरमन में जगाओ तुम।

क्या हुआ गर सुहाने स्वप्न
टूट-टूट कर बिखर भी गए,
मिटकर एक बीज की तरह 
पुनः नव सृजन करो तुम।

ख़ामोशियाँ लील लेती हैं
सारी ज़िंदगी की ख़ुशियाँ,
हँस बोल, जी भर कर जी लो
सुनहरे पलों को यूँ ना खोओ तुम।

कमला वेदी - खेतीखान, चम्पावत (उत्तराखंड)

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