भूख - कहानी - पुश्पिन्दर सिंह सारथी

सुरेश सब्ज़ी लेने बाज़ार जाता है तो रास्ते मे देखता है कि सड़क किनारे एक महिला अपने बच्चे को गोद मे लिए परेशान बैठी है।
सुरेश को रहा नहीं जाता और उस महिला के पास जाता है तो देखता है कि उसका बच्चा रो रहा है।

सुरेश बच्चे के रोने का कारण पूछता है तो महिला कहती है- बाबू जी मेरे बच्चे को भूख लगी है और इसकी भूख मिटाने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है।
सुरेश फिर महिला से पूछता है कि आपकी ये हालत कैसे हुई?
महिला - बाबू जी मेरे पति की अकाल मृत्यु के कारण मेरा घर परिवार सब ख़त्म हो गया और मे कई वर्षो से भटकटी हुई यहाँ तक पहुच गई। जहाँ भी काम करने गई वहाँ मेरा शोषण करने का प्रयास किया गया। अपने आपको बचाने के लिए मैंने भीख माँगना स्वीकार कर लिया और आज मेरे शरीर पर ये फटे हुए कपड़े इसकी निशानी है।

सुरेश का हृदय कोमल था उसने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाल कर उस महिला को दे दिए और सब्ज़ी लेने चला गया।
सब्ज़ी लेकर सुरेश घर पहुँचा तो उसकी पत्नी ने सब्जी देख पुछा आज इतनी कम क्यूँ?
सुरेश रास्ते मे घटी घटना को बताता है।
रमेश की पत्नी- आप इतने बड़े दानदाता हो तो उसे घर ले आओ मेरे सर पर बिठा दो। घर का सारा सामान उसे दे दो। आपने अपने बच्चो की तरफ़ नहीं देखा दूसरे के बच्चो को देख पीड़ा होती है।

इतना सुनकर रमेश अपनी पत्नी से कहता है कि इस संसार मे मनुष्य मनुष्य का ही दुश्मन है। हम लोग आपसी भूख की प्रतिस्पर्धा मे एक दूसरे को कमज़ोर करते ताकि एक दूसरे का शोषण कर सके। आज उस महिला से मिलने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मनुष्य दिखावे मे उसका स्वभाव अच्छा है लेकिन अंदर से वो घमंडी है।
आज मैंने कुछ पैसे देकर उसकी मदद कर दी तो आपने पूरे घर को आसमान पर उठा लिया कल को यदि हमारे साथ ऐसा हुआ तब आप क्या करोगी।

इतना सुन पत्नी चुप हो जाती है और रमेश से माफी माँगते हुए पूछती है चाय पियोगे?

पुश्पिन्दर सिंह सारथी - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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