क्या खोया क्या पाया
ये सोचना ही व्यर्थ है,
क्या नया कर सकते हो
इसी में जीवन का अर्थ है।
लगाव पीड़ा प्रेम भक्ति है,
उदासी व्यर्थ है,
स्वयं पर विश्वास ही
नए पथ का प्रारम्भ है।
घमंड क्रूरता झुकाव दोष है,
सत्य का साथ ही
असत्य का अंत है।
क्रोध एक रोग है,
प्रतिशोध दुर्बलता है,
स्वयं का अवलोकन ही
मन की शांती है।
हार मानना पाप है,
जीत जाना भी लक्ष्य नहीं,
सन्मार्ग पर चलते रहना ही
मनुष्य का कर्म है।
न सुख स्थायी है
न दुःख चिरन्तन हैं,
स्वयं पर विजय ही
कष्टो से मुक्ति है।
प्रतिभा नायक - मुम्बई (महाराष्ट्र)