यहाँ क्यों लोग इस सच्चाई से अनजान होते हैं - ग़ज़ल - धर्वेन्द्र सिंह

अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती: 1222 1222 1222 1222

यहाँ क्यों लोग इस सच्चाई से अनजान होते हैं,
कि अच्छे कर्म ही इंसान की पहचान होते है।

हमारा नज़रिया ये है कि दुनिया इक सराए है,
यहाँ सब लोग कुछ ही रोज़ के मेहमान होते हैं।

मुसलमाँ है न कोई सिख न ही हिन्दू न ईसाई,
किसी मज़हब के हों इंसान तो इंसान होते हैैं।

ये बच्चे अक्ल के कच्चे हैं लेकिन दिल के सच्चे हैं,
यही बच्चे हमारे होंठों की मुस्कान होते हैं।

मुनाफ़ा गर कोई होता यही व्यापार करते सब,
मुहब्बत की तिजारत में फ़क़त नुकसान होते हैं।

कभी तो ऐ हुकूमत ले ख़बर तू इन ग़रीबों की,
ग़रीबों के भी तो कुछ ख़्वाब कुछ अरमान होते हैैं।

ख़ुदा को भूलकर जो लोग ख़ुद ही बन ख़ुदा जाएँ,
हमारे ख़्याल से वो लोग फिर नादान होते हैं।

न घबराओ ज़रा सा भी सफ़र की मुश्किलों से तुम,
सफ़र में मुश्किलों से रास्ते आसान होते हैं।

गुज़ारा जाए हो ईमानदारों का तो थोड़े में,
उन्हें ही चाहिए रिश्वत जो बेईमान होते हैं।

धर्वेन्द्र सिंह - भिवानी (हरियाणा)

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