ज़ुबान तेज़ या तलवार - लेख - सुधीर श्रीवास्तव

पुरानी कहावत है कि ज़ुबान कैंची की तरह चलती है और कतर कतर बात को काटती रहती है। ये कहावत उन पर लागू होती है जो बिना सोचे विचारे अनावश्यक रुप से औरों की बातचीत के मध्य कूदते रहते हैं। ज़ुबान को अनेक तरह की उपमाओं से भी नवाज़ने का प्रचलन है, जैसे तीखी-ज़ुबान, मीठी-ज़ुबान, प्यारी-ज़ुबान, सम्मोहित करने वाली ज़ुबान, शहद भरी ज़ुबान, ज़हरीली-ज़ुबान, नश्तर चलाने वाली ज़ुबान, बात कतरने वाली ज़ुबान आदि आदि।

जहाँ तक ज़ुबान और तलवार की तुलना का प्रश्न है, तो दोनों ही अस्त्र हैं। दोनों ही तीक्ष्ण धार वाले और परिणाम बदलने वाले हैं। दोनों की वार करने की और मारक क्षमता भी अपने आप में बेजोड़ होती है और दोनों से ही घाव बहुत गहरे लगने के साथ ही सब कुछ परिमार्जित करने में अव्वल हैं। बस तलवार का घाव दिखता है, जबकि ज़ुबान का घाव अदृश्य रहता है।

तलवार लौह धातु की बनी, वज़न में भारी होने के कारण बहुत गहरे तक घाव करने में सक्षम होती है।
किन्तु, ज़ुबान तलवार की तुलना में ज़्यादा ताक़तवर और ज़्यादा गहरा घाव करने वाली बहुत ही तेज़ मीठी अथवा तीखी भी होती है। होने को तो ज़ुबान वज़न में बहुत ही हल्की और बिना हाड़-मांस की लचीली और पिलपिली सी होती है, परन्तु उसके शस्त्र कड़वे और कटु शब्दों के बने होतें हैं जिनके वार शत्रु को बहुत अधिक दूर रहकर भी हानि पहुँचाने में सक्षम होते हैं। इनका निशाना भी सधा हुआ और पक्का होता है, जो सीधे दिल में जाकर लगता है और शत्रु पीड़ा से तिलमिला और बौखला उठता है। यह इतना गहरा घाव करता है कि जीवनभर नहीं भरता। तलवार का घाव तो समय के गुज़रने के साथ-साथ भर भी जाता है और कभी न कभी पूरी तरह ठीक भी हो जाता है परन्तु ज़ुबान से लगाया गया घाव कभी नहीं भरता, चाहे कितना ही लम्बा समय गुज़र जाए या लाख जतन कर लिए जाएँ।

इस बात से शायद ही कोई सहमत न हो कि तलवार से कहीं ज़्यादा घातक और तेज़ ज़ुबान है। क्योंकि कई बार ज़ुबान का वार इतना घातक होता है कि इसका घाव प्रत्यक्ष दिखाई न देने पर भी सामने वाले की जीवनलीला तक समाप्त कर देने का कारण बन जाता है।
इसके अलावा तलवार सिर्फ़ घाव देती है लेकिन ज़ुबान न दिखने वाले मारक घाव देने के साथ-साथ मरहम लगाकर शीतलता प्रदान करने का भी काम बख़ूबी कर सकती है जिसे कर पाना तलवार के वश की बात नहीं। वो तो केवल काटना और मार डालना ही कर सकती है जबकि ज़ुबान मारना और बचाना दोनों कर सकती है।
इस तरह यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ज़ुबान तलवार से अधिक तेज़ होती है। ज़ुबान का घाव न दिखने के बाद भी पीड़ि़त व्यक्ति के लिए नासूर बन जाता है और सिर्फ़ एक ही व्यक्ति नहीं व्यक्तियों, परिवार, समूह तक को प्रभावित कर सकने में सक्षम होता है।

आ. बजरंग लाल केजड़ीवाल (तिनसुकिया, असम) के शब्दों में:
"तलवार बड़ी घातक करती गहरे घाव तन पर,
ज़ुबाँ हृदय विदिर्ण कर मारती तिल तिल कर।"

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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