वह गुरु है - कविता - आलोक रंजन इंदौरवी

ज्ञान का दीपक जला दे,
दुर्गुणों को जो हटा दे,
तिमिर मन का ज्योति बनकर
जो गहनता से मिटा दे,
उच्चतम जीवन बना दे,
वह गुरु है।

विविध नैराशा घटा दे,
सत्य की महिमा बता दे,
न्याय का पहलू बता दे,
सुगम सा रस्ता बता दे,
देव बन देवत्व ला दे,
वह गुरु है।

साहसिक बदलाव कर दे,
ऐसी मन में चाह कर दे,
पथ प्रशस्त उमंग भर दे,
कुटिलता को जो कतर दे,
प्रेम का संचरण कर दे,
वह गुरु है।

वेदना का नाश कर दे,
वासना का त्याग कर दे,
नवलता नव रूप कर दे,
स्वयं के अनुरूप पर दे,
शांति की सुखमय लहर दे,
वह गुरु है।

ज़िन्दगी में त्याग तप हो,
इष्ट का कुछ नित्य जप हो,
साधना में सुरत रत हो,
सद्विचारों सा सरस हो,
शिष्य के हित नियम पथ हो,
वह गुरु है।

संस्कारों को जगा दे,
दुर्विचारों को जला दे,
स्वयं चलकर सुपथ पर जो,
शिष्य को भी चला दे,
या कहो रंजन बना दे,
वह गुरु है।

आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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