नशा नाश क मूल बा - अवधी गीत - संजय राजभर "समित"

देई डुबाय नइया,
इ भाँग दारू गँजवा।
सुना हो सईयाँ जी,
जर जाई करेजवा।। 

थू-थू करत बा आज,
गँऊवा के लोगवा। 
सब कुछ बिकाय जाई,
छुटी ना ई रोगवा।
शउख बरिआर लागल,
कइसे बची परनवा।
सुना हो सईयाँ जी,
जर जाई करेजवा।। 

मारपीट करबय तू,
गिरबय नाला-नाली।
मिलके लल्लू पंजू,
देइहँ तोहंँय गाली।
धूमिल होई इज़्ज़त,
डूब जाइ सुरूजवा। 
सुना हो सईयाँ जी,
जर जाई करेजवा। 

बड़-बड़ दिग्गज नाहर,
भइलय जमींदोज हो।
नशा नाश क मूल बा,
'समित' बोलय रोज़ हो।
इतिहास तनी झाँका,
टूट जाई पिंजरवा।
सुना हो सईयाँ जी,
जर जाई करेजवा।। 

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos