प्रणय स्वप्न - कविता - सुरेंद्र प्रजापति

कमल-नयन का सुख-स्वप्न
पुष्प छू लिया, अन्तर्मन,
हर सुरों में गंध बसा है
पुलकिल होंठ अपावन।

जीवन का सौंदर्य दहक कर
तन-मन का प्रणय, चहक कर,
सार जगत का प्रमुदित हो
आता मग्न सरस नभ से स्वर।

प्रिय! ए मंगल दीप, आरती
पुष्प का निर्मल विस्तार,
चम्पा के हारों में गूंथकर
चंचल गीतों का जय-जयकार।

ले आओ, माधवी आमंत्रण
पत्र, वेणी का, पल्लव का,
मुस्कान मोदकों से भरे हुए
स्वर्णिम गीतों के कलरव का।

सुरेंद्र प्रजापति - बलिया, गया (बिहार)

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