इच्छा शक्ति - कविता - बृज उमराव

जज़्बा ख़ुद में पैदा ऐसा,
आसाँ हर काम नज़र आता।
बीती बातों से सीख मिली,
बिगड़ा काम सुधर जाता।।

आत्म नियंत्रण को साबित कर,
इच्छा शक्ति प्रबल रखें।
भरोसे का ज़्यादा काम नहीं,
नैनों से ख़ुद ही परखें।।

मनोबल अगर ऊँचा है,
कठिन राह सुगम होगी।
अगर आपका मन टूटा,
आसान राह दुर्गम होगी।।

चींटी जब ऊँचे में चढ़ती,
बार-बार गिर जाती है।
कर प्रयास आख़िर में आख़िर,
मंज़िल तक चढ़ जाती है।।

हौसला अगर बुलन्द रहे,
दुश्मन की कुछ औक़ात नहीं।
कर्म आप ख़ुद ही करते,
बटती कोई ख़ैरात नहीं।।

मन को यदि मज़बूत रखें,
मार्ग प्रशस्त सदा होता।
ज्यों धारा के जल प्रवाह से,
दरिया एक बना होता।।

करें निरंतर हम प्रयास तो,
मंज़िल को पा जाएँगे।
अगर निराशा हाथ लगी,
पुनः हाथ आज़माएँगे।।

प्रबल मनोंबल बाँहों का बल,
मंज़िल क़दम चूम लेगी।
ईर्ष्या कटुता और निराशा,
इर्द गिर्द सब घूमेंगी।।

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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