गीत मिलन के गाऊँगी - कविता - राजकुमार बृजवासी

गीत मिलन के गाऊँगी, संगीत वही गुनगुनाऊँगी,
जो पिया मन भाए, प्रीत वही अपनाऊँगी।
गीत मिलन के गाऊँगी, गीत मिलन के गाऊँगी।।

रिम-झिम रिम-झिम बरसे मेघा, पिया की मोहे याद सताए,
झुलूँ कैसे बिन साजन के, सखी री सावन तनिक ना भाए।
आ गई है मिलन की बेला, मेरा माही क्यों ना आए,
जा कहीं और बरस रे, बदरा मन को मेरे क्यों तरसाए।
करके शृंगार किस को मैं दिखलाऊँगी, 
जो पिया मन भाए प्रीत वही अपनाऊँगी।
गीत मिलन के गाऊँगी, गीत मिलन के गाऊँगी।।

पिया मिलन को हुई बावली सुध बुध सब बिसराई मैं,
जी लगे ना तुम बिन सजना रातों की तन्हाई में।
पार करूँगी प्रेम का दरिया डूब कर गहराई में,
पास तुम्हारे उड़ कर आती बन जाती पुरवाई मैं।
तुम सपनों के राजकुमार बार-बार दोहराऊँगी,
जो पिया मन भाए प्रीत, वही अपनाऊँगी।
गीत मिलन के गाऊँगी, गीत मिलन के गाऊँगी।।

कजरा बहके गजरा महके सावन झूमें बालों में,
तन गुदगुदाए मन गुदगुदाए करे ठिठोली गालों में।
बारिश की बुँदे तन को जलाए डूबी रहूँ ख़्यालों में,
बाहें पसारे राह निहारु इंतज़ार किया कई सालों में।
बाली उमरिया सोहल बरस की दर्पण देख लजाऊँगी,
जो पिया मन भाए प्रीत वही अपनाऊँगी।
गीत मिलन के गाऊँगी, गीत मिलन के गाऊँगी।।

राजकुमार बृजवासी - फरीदाबाद (हरियाणा)

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