बचपन - कविता - आराधना प्रियदर्शनी

झूठ और चोरी के डर से परे,
साहस और स्पष्टवादिता के साथ,
दुश्मनी की कड़वाहट से दूर,
चंचलता और आत्मीयता के साथ।

बदनामी की संभावना से अपरिचित,
परोपकार के शरण की तरह,
योग्यता और मस्ती के साथ,
ज़ख़्म पर जैसे मरहम की तरह।

यह एक विचित्र स्वभाव है,
कल्पना का सुंदर क़दम है,
यह कहीं जंगल का मनमानापन,
कहीं नाज़ुक सा एक भ्रम है।

सच्चाई की दृढ़ता जिसमें,
एक उन्मादित एहसास है,
मासूमियत का मेला है,
उत्साह से प्रेरित विश्वास है।

प्रलोभन के जाल से मुक्त,
एक अनोखी, भ्रामक अवस्था है,
जीवन अमृत का प्याला है तब तक,
जब तक इंसान बच्चा है।

आँखों से छलकती सौम्यता,
व्यवहार में ऐसा भोलापन है,
अतुल्य, अनूठी, ख़ुशहाल छवि,
फूलों सा हसता बचपन है।

आराधना प्रियदर्शनी - बेंगलुरु (कर्नाटक)

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