दुनिया के दिए हर ग़म के ख़िलाफ़ हँसते हैं,
हम ज्योति - स्वयं जल कर रोशनी करते हैं!
हवाओं की क्या है बिसात जो बुझा दे हमें,
शीश महल में नहीं हम झोपड़ों में जलते हैं!
नाम को समझे, तब नाम के अस्तित्व को समझें,
जग का भला कर, अपना सर उठा कर चलते हैं!
क्रोध, ग़ुस्सा, नफ़रत, अहंकार सब धीमा ज़हर हैं,
हम जब स्वयं के वश में होते हैं इन से लड़ते हैं!
ज़माने जो ख़ुद पीते हैं इन ज़हरीली आँधियों को,
उनसे तो हमेशा ही हम दस कोस दूर ही रहते हैं!
हमें रश्क नहीं किसी से, इश्क ही है सभी से,
तभी सबके लिए स्वयं जलकर रोशनी करते हैं!
कहीं कोई हवा बुझा ना दे हमारी रोशनी को,
तनते नहीं, झुक कर रहते, उसे दोस्त कहते हैं!
दुख होता है जब, वह हमारे वजूद को हँसते हैं,
तबाह नहीं करते किसी को, ख़ामोशी से रो लेते हैं!
ज्योति सिन्हा - मुजफ्फरपुर (बिहार)