शब्द - दोहा छंद - महेन्द्र सिंह राज

शब्द नाम ही ब्रह्म है, शब्द नाम ओंकार। 
रचे शब्द में वेद हैं, शब्दों में ही सार।।

शब्दों का संसार है, शब्दों से साहित्य। 
शब्दों की पूजा करो, निशिदिन प्रतिपल नित्य।।

शब्दों की दुनियाँ बड़ी, शब्दों से संसार।
शब्दों से दुश्मन बने, बनें शब्द से यार।।

शब्दों की माया बड़ी, शब्दों से कर प्रेम। 
यही जगत की रीत है, यही जगत का नेम।।

बोलो मीठे शब्द तो, नेह करें हर लोग।
शब्दों से आदर मिले, शब्दों से ही भोग।।

निकले मुख से शब्द जब, हिए तराज़ू तोल। 
मधुरस घोले जगत में, पावन शुद्ध अमोल।।

शब्दों से कविता बने, शब्दों से आलेख। 
शब्दों से आलाप हो, शब्द शृंखला मेंख।।

स्वर व्यंजन हैं शब्द के, रचिता दो ही भाग। 
इनसे ही रचना बने, यही शब्द अनुभाग।।

नहीं शब्द स्वर बिन बने, सुनिए ध्यान लगाए।  
जो नर जैसा बोलता, वैसा उत्तर पाए।।

शब्द नहीं स्वर बिन बने, उच्चारण नहिं होए।
व्यंजन भी स्वर के बिना, अपनी महिमा खोए।।
 
कृपा करो माँ शारदा, शब्दों का दो ज्ञान।
जिससे कविता रच सकूँ, अर्थ भाव विज्ञान।।

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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